तलाशे ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्य
चरित चर्चा
हैदराबाद में जन्मे-पढ़े धीरज पाशम ने एक ऐसे ब्लैक होल की खोज की है, जिसे आइंसटीन के सिद्धांत की अगली कड़ी कहा जा रहा है। नासा ने भी इसे दुर्लभ खोज बताया है। इस नायाब खोज से ब्लैक होल की संरचना, समय, तारों को लीलने की उसकी क्षमता और आइंसटीन के सिद्धांत को समझने में मदद मिलेगी। छोटी उम्र में बड़ी उपलब्धियों का जिक्र कर रहे हैं केवल तिवारी
भारतीयों के तेज और खोजी दिमाग का एक बार फिर दुनिया ने लोहा माना है। जो बात सिर्फ चर्चाओं में थी, उसे खोज निकाला गया है। खोजा भी एक भारतीय वैज्ञानिक ने। इस खोज को नासा ने दुर्लभ शोध की संज्ञा दी है तो अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालयों ने इसे आइंस्टीन के सिद्धांत की अगली कड़ी कहा है। साढ़े चार दशक पहले भी इस तरह की खोज हुई थी, लेकिन तब इसके आकार-प्रकार को लेकर वैज्ञानिकों के पास कोई सटीक जवाब नहीं था। इस बार भारतीय वैज्ञानिक और उनके सहयोगियों के जरिये जो खोज हुई है, उसको लेकर वैज्ञानिकों के बीच संबंधित विवाद तो खत्म हुआ ही है, पहले से चल रहा भ्रम भी दूर हुआ है। यह खोज है ब्लैक होल की। इसे खोजा है भारतीय वैज्ञानिक धीरज ने। पूरा नाम है धीरज रंगा रेड्डी पाशम। उम्र है 37 साल। अभी वह विज्ञान संबंधी पढ़ाई भी कर रहे हैं, इसलिए वैज्ञानिक के बजाय शोधार्थी या विद्यार्थी कहलाना पसंद करते हैं।
धीरज का जन्म दक्षिण भारत के हैदराबाद में हुआ। धीरज की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी विज्ञान वाली रही है। माता-पिता और घर के अन्य सदस्य अच्छी शिक्षा प्राप्त थे और बच्चे को बचपन से ही उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित करना उनका लक्ष्य था। बालक धीरज को हैदराबाद पब्लिक स्कूल में दाखिला दिलाया गया। स्कूली शिक्षा में अव्वल धीरज को हाई स्कूल तक की पढ़ाई पूरी करने से पहले खगोलीय विषयों की जानकारी जुटाने का बहुत शौक था। स्कूल में ग्रहों और तारों के बारे में जो पढ़ाया जाता, उसे धीरज घर में मॉडल बनाकर प्रयोग करते और घरवालों को समझाते। घरवालों ने धीरज की रुचि में कभी अपनी इच्छाओं को नहीं थोपा। वर्ष 2004 में धीरज ने आईआईटी बॉम्बे की प्रवेश परीक्षा पास की और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक में दाखिला लिया। उन्होंने यहां वर्ष 2008 तक पढ़ाई की। इस बीच उन्होंने कई शोध लेखों पर भी काम किया। एक ओर धीरज की बीटेक की पढ़ाई चल रही थी और दूसरी ओर वह विश्व की कई हस्तियों के नेतृत्व में जरूरी बातें भी सीख रहे थे। बीटेक की पढ़ाई पूरी होने के एक साल पहले यानी वर्ष 2007 में धीरज ने आस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ स्विनबर्न में डॉ. साराह मैडिसन के नेतृत्व में केमिकल मॉडलिंग ऑफ प्रोटो पैलेनेट्री डिस्क पर रिसर्च किया। बीटेक करने के बाद घरवालों ने धीरज की इच्छा के अनुसार अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में दाखिला दिलाया। यहां उन्होंने खगोल विद्या (एस्ट्रोनोमी) की दो वर्षों तक पढ़ाई की। इसी यूनिवर्सिटी से और इसी विषय में इसी साल इनकी पीएचडी पूरी हुई। इनकी लगन और मेहनत का ही परिणाम था कि इन्हें नासा में अपने शोध विषय पर आगे पढ़ाई जारी रखने का मौका मिला। यहां डॉ. ब्रॉड एस सेनको के नेतृत्व में इन्होंने अध्ययन शुरू किया और शोध ग्रंथ पर काम किया। यहीं काम करते हुए उन्होंने ब्लैक होल की खोज की और उसका पूरा खाका भी बताया। इससे पहले 1970 में वैज्ञानिकों ने ऐसे ब्लैक होल की खोज की थी लेकिन उस वक्त की खोज में कई किंतु-परंतु थे। धीरज ने उस समय की खोज को दिमाग में रखकर उसके आगे काम किया था। उनकी इस रिसर्च और इससे संबंधित पद्धति को नासा के वैज्ञानिकों ने बेहतरीन करार दिया। अपने सहयोगियों के जरिये धीरज ने यह प्रतिपादित किया कि ब्लैक होल गैलेक्सी एम-82 में छिपा है। यह पृथ्वी से 1.20 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है। इसके अंदर दो तारे दिख रहे हैं। इनका नाम एक्स-41 और एक्स-42 है। वैज्ञानिकों और खगोलीय अध्ययन करने वालों के लिए यह एक नायाब खोज है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके जरिए ब्लैक होल की संरचना-समय, तारों को लीलने की उसकी क्षमता और आइंस्टीन के सिद्धांत को समझने में मदद मिलेगी। धीरज आर पॉशम ने बताया कि इस ब्लैक होल का द्रव्यमान हमारे सूर्य से 400 गुना ज्यादा है। ब्लैक होल के खोजकर्ता और खगोलीय ज्ञान को बटोरने में जुटे धीरज को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया। इसी साल उन्हें एनजी वाइले फेलोशिप मिली है। इसके तहत पढ़ाई के दौरान उन्हें दस हजार डॉलर छात्रवृत्ति मिलेगी। शोध के दौरान ही दो साल पहले यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड ने उन्हें मौखिक प्रेजेंटेशन में 500 डॉलर का पुरस्कार दिया। इससे पहले उन्हें बेस्ट पोस्टर अवार्ड, डीन्स अवार्ड से नवाजा जा चुका है। धीरज पॉशम ने अनेक शोधपत्र जारी किये। इनमें से अ 400 सोलर मास ब्लैक होल इन द एम 82 गैलेक्सी, कैन द 62 डे एक्स रे पीरियड ऑफ यूएलएक्स एम82 एक्स-1 बी ड्यू टू ए प्रेसेसिंग एसर्टन डिस्क जैसे तमाम विषय शामिल हैं। ये सभी शोधपत्र अलग-अलग वैज्ञानिकों के नेतृत्व में धीरज ने तैयार किये और इसे सभी ने प्रमाणित किया। धीरज का कहना है कि ब्रह्मांड की व्यापकता की ही तरह उनके निजी विषय में भी कई गूढ़ रहस्य छिपे हैं। लगातार सराहे जा रहे धीरज को निश्चित तौर पर इसमें आगे भी सफलता मिलेगी और यह सफलता सबके काम आयेगी। धीरज को बहुत-बहुत बधाई!